Monika garg

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लेखनी प्रतियोगिता -06-Apr-2023# रहे ना रहे हम

"बात बहुत पुरानी है पर जेहन मे उसकी याद ऐसे है जैसे कल ही की बात हो।"सुंदर लाल अपने साथी विष्णु को पार्क की हरी घास मे बैठ कर बतियाते हुए कह रहे थे।
"तुम्हें पता है आजकल दोस्ती बस नाम की रह गयी है ।दोस्त तो अपने जमाने मे हुआ करते थे।घर मे कैसी परिस्थिति हो पर अपने दोस्त से कभी कोई शिक़ायत नही होती थी।मै जब छोटा था करीबन बारह साल का रहा होऊंगा।मेरा एक लंगोटिया यार था किशन ।हम साथ साथ ही स्कूल जाते थे साथ ही स्कूल का काम करते थे।एक ही गली मे घर होने की वजह से क्या तख्ती पोतना, क्या पैन मे स्याही भरना,और क्या कालिख को घिस घिस का तख्ती के लिए स्याही बनाना ,सब काम हमारे इकठ्ठे होते थे ।किशन माली हालतों में मेरे परिवार से अच्छे घर का था पर मजाल है कभी अमीरी गरीबी की काली छाया हमारे रिश्ते के बीच आयी हो।
वो हमेशा पढ़ाई मे निखत ही रहा था हर काम मुझ से पूछकर करता था।उसे मेरी मां के हाथ का बना सत्तू बहुत पसंद था जब भी घर आता आते ही कहता,"चाची सत्तू बना दो ना । बड़ी भूख लगी है।"
मां भी लाड़ मे आकर उसे सबसे बड़ा कटोरा भरकर सत्तू देती।मै बहुत बार सोचता कि इसे अपने काजू बादाम वाले रबड़ी वाले दूध की जगह हमारा ये रुखा सूखा सत्तू क्यों अच्छा लगता है ।जवाब तब नही मिला अब मिल रहा है कि वो किशन का प्यार था मेरे और मेरे परिवार की तरफ ।
मुझे याद आ रहा है एक दिन मै ओर किशन स्कूल से वापिस आ रहे थे ।मेरे बैग मे मास्टर जी ने कुछ किताबें डाल दी थी घर ले जाने के लिए क्योंकि वो हमारे घर के पास ही रहते थे। सोई किताबें मास्टर जी के घर पहुंचानी थी इसलिए उन्होंने मेरे बैग मे डाल दी 
मै और किशन आपस मे बातें करते हुए जा रहे थे अचानक उसकी नज़र मेरे छिले हुए कंधे पर पड़ी किताबों के बोझ से मेरा कंधा छिल गया था।वह तुरंत रुका और झट से मेरे कंधे से थैला उतारने लगा,"ला सुंदर इसे मुझे दे ।पागल कही का इतना कंधा छिल गया है फिर भी इस थैले को लटकाए है ।"
मै डर रहा था उसे थैला देने मे एक तो शरीर का पतला दुबला था ऊपर से थैला भारी बहुत था। लेकिन उसने जिद करके वो थैला मुझ से ले लिया।
हम थोड़ी ही दूर चले होगे कि तभी सामने से अचानक एक ट्रक आता दिखा वह शायद अपना संतुलन खो चुका था ।हम ढलान पर थे ।हम कुछ समझ पाते उससे पहले ही वो बिल्कुल हमारे पास आ गया मेरे दिमाग की घंटियां बजने लगी मुझे कुछ नही सूझ रहा था मैने आव देखा न ताव तुरंत किशन को दूसरी तरफ मैदान की तरफ धकेल दिया ।और ट्रक मुझे साइड मारकर चला गया जिससे मै उछल कर एक चट्टान से टकराते हुए झाड़ियों मे जा गिरा ।मेरा सारा शरीर लहूलुहान हो गया था मुझे कुछ दिखाई नही दे रहा था। शायद पत्थर के टुकड़े और झाड़ियों के कांटे मेरी आंखों मे घुस गये थे । मैंने सुना किशन रोरो कर मदद के लिए पुकार रहा था और मै बेहोश हो गया।जब मुझे होश आया तो मै अस्पताल मे था मेरी आंखों पर पट्टी बंधी थी मेरी आंखों का तीन घंटे आपरेशन चला था।जब मुझे होश आया तो सबसे पहली आवाज मुझे किशन की सुनाई दी वो सुबक रहा था मैंने धीरे से उसे अपने पास बुलाया और उसे चुप करवाने का प्रयत्न किया वो बस यही रट लगाए हुए था कि मेरे कारण तुम्हारे आंखों का ये हाल हुआ है।
डाक्टर साहब कह रहे थे पट्टी खुलने के बाद पता चलेगा तुम देख पाओगे या नही।
उसका डर यकीन मे तब बदला जब मेरी सात दिन बाद पट्टी खुली। वास्तव मे अंधेरे ने मुझे अपने आगोश मे ले लिया था।पर अब किया भी क्या जा सकता था होनी को यही मंजूर था।मै पूर्णतः अंधा हो गया था ।
किशन का मन बड़ा रोता था । मुझे इस तरह मजबूर देखकर वह मेरी अंधे की लाठी बन गया था। मुझे हाथ पकड़ कर स्कूल ले जाता ,मेरी तख्ती पोतता, मेरे पेन मे स्याही भरता, मां से कहकर जब सत्तू लेता तो बड़ा कटोरा मेरे लिए लाता ,जरा सा हाथ इधर उधर हो जाता और सत्तू गिर जाता तो तुरंत उसे पौंछ देता।
कहते है कभी कभी आत्म ग्लानि मुनष्य पर हावी हो जाती है तो वह रोग का कारण बन जाती है वही किशन के साथ हुआ उसे कैंसर हो गया वो भी आखिरी स्टेज का डाक्टर को दिखाया तो पाया वह चंद दिनों का मेहमान है लेकिन वह फिर भी मेरी सहायता के लिए दौड़ा आता। एक दिन मैने ही उसे कह दिया ,"यार तेरी तबीयत ठीक नहीं रहती कल चाची भी मेरी मां से कह रही थी कि ना जाने सुंदर की मदद करने के लिए किशन मे कहां से ताकत आ जाती हे।अब तू आराम करा कर।"
वह बोला,"थोड़े से दिन बचे है यार क्यों मुझे अपने से दूर करता है देख लेना मरने के बाद भी तेरे अंग संग रहूंगा।"
मैंने उसके मुंह पर हाथ रख कर कहा,"शशश मरे तुम्हारे दुश्मन देखना अभी तुम मेरी शादी मे भी आओ गे।"
वो हंसते हुए बोला,"वो तो सो प्रतिशत ,अपनी आंखों से देखूंगा।"
समय का काल चक्र मेरे प्यारे यार को लील गया।उसके दो दिन बाद मुझे सिटी अस्पताल से कहलवा आया कि आप की आंखों का आपरेशन होगा ।मै हक्का बक्का रह गया मै सोच रहा था किसको मुझ गरीब अंधे को अपने यार के बगैर यूं ठोकरें खाते देखकर तरस आ गया ।मै नियत समय पर अस्पताल पहुंचा और मेरा आपरेशन हो गया जो सफल रहा।आठ दिन बाद मेरी पट्टी खुली तो मुझे सब दिखाई दे रहा था तभी नर्स एक लिफाफा लेकर आयी ओर मुझे देकर बोली,"ये आप के लिए।"
मैंने धड़कते दिल से लिफ़ाफ़ा खोला मुझे लगा शायद अस्पताल का बिल है पर जब कागज खोलकर पढ़ा तो मेरे यार किशन का आखिरी खत था मेरे नाम।
मेरे अज़ीज़।

जब तुम्हें ये पत्र मिलेगा तो मै दुनिया छोड़ चुका होंगा।मेरे मन मे एक ग्लानि पल रही थी जिसने मुझे जिंदा नही रहने दिया ।पर हां देखो मैने कहा था ना कि मैं मरने के बाद भी तुम्हारे अंग संग रहूंगा।मेरी ही आंखों से तुम दुनिया के रंग देखोगे ।अस्पताल के बिल की चिंता मत करना वो पहले ही भरा जा चुका है और लो मैंने अपना वादा भी निभाया
मै रहूं या ना रहूं पर मेरी आंखें तुम्हारी शादी ज़रूर देखे गी।
अब रुकसत होता हूं।
अलविदा दोस्त।

मै डबडबाई आंखों से अपने यार की यारी को उसकी आंखों से महसूस कर रहा था ,रहा हूं ओर करता रहूंगा।

  

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3 Comments

madhura

07-Apr-2023 03:06 PM

v nice story

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Rajesh rajesh

07-Apr-2023 12:23 PM

बहुत ही खूबसूरत रचना

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